भारत में मुख्तय: दो प्रकार स्कूल होते हैं १.दिन का विद्यालय (Day School) २. आवसायी विद्यालय (Residential School) इन दोनों में मुख्य अंतर होता है कि Day School में तो बच्चे शाम को स्कूल से घर आ जाते हैं परन्तु Residential School में बच्चे स्कूल में ही रहते हैं और केवल छुटियों में ही घर आते हैं।
Day School: डे स्कूल में बच्चे अपने पेरेंट्स के साथ रहकर शिक्षा ग्रहण करते हैंl बच्चे दिन में स्कूल जाते हैं, पढ़ाई करते हैं और घर आ जाते हैं। पेरेंट्स बच्चों की पढ़ाई में तथा दैनिक कार्यों में मदद करते हैं और साथ ही अच्छा समय व्यतीत करते हैं। जिसका बच्चों की परवरिश में बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है जिससे उनके सम्बन्ध में प्रगाढ़ता आती हैl Day school में पढ़ने वाले बच्चों के सम्बन्ध उनकी home community से बहुत अच्छे हो जाते हैं।
इन स्कूलों में admission 1st class से प्रारम्भ होता है जिसके लिए बच्चे की आयु कम से कम 5 वर्ष होनी चाहिये परन्तु आजकल प्राइवेट स्कूलों में नर्सरी में भी admission दिया जाता है, जिसके लिए बच्चे की आयु कम से कम 3 वर्ष होनी चाहिये।
Residential School: आवसायी स्कूल (Residential School) को Boarding School भी कहा जाता है।Residential School में बच्चे स्कूल कैंपस में रहते हैं। उनकी देखभाल के लिए वहाँ शिक्षक होते हैंI ये बच्चे केवल छुट्टियों में ही अपने परिवार से मिल पाते हैं। Residential School में Day School की अपेक्षा टीचर्स और स्टूडेंट्स के सम्बन्धों में अधिक द्रढ़ता आती है। शिक्षक विद्यार्थी के अच्छे प्रेरक (Motivator) होते हैं। कैंपस में रहने के कारण बच्चों में आत्मनिर्भता आती है। यहां बच्चे ग्रुप में रहते हैं जिस कारण वे कम समय में अधिक चीजें सीख पाते हैं।
भारत में बहुत से सरकारी तथा गैर सरकारी Residential School हैं। परन्तु Day School की तुलना में इनकी संख्या बहुत कम है। आवासीय स्कूलों में एडमिशन की प्रक्रिया भिन्न-भिन्न स्कूल में भिन्न-भिन्न प्रकार से होती परन्तु अधिकतर स्कूल में admission class 6 से written test के आधार पर होता है।
बच्चों को बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाने से पहले जानने वाली कुछ आवश्यक बातें :
बच्चों को बोर्डिंग स्कूल मैं पढ़ाना चाहिये या नहीं इसमें लोगों की अपनी-अलग अलग राय होती है। बच्चे को कम उम्र में बोर्डिंग स्कूल में भेजने का फैसला पेरेंट्स के लिए अक्सर कठिन होता है। ऐसे में जब भी बोर्डिंग स्कूल की की बात होती है, तो मन में कई सवाल उठते हैं, कि यह बच्चे के लिए फायदेमंद होगा या नहीं। पैंरट्स होने के नाते हमारी ये जिम्मेदारी होती है कि बच्चे को बोर्डिंग स्कूल में भेजने से पहले बोर्डिंग स्कूल के हर एक पहलुओं की अच्छे से पड़ताल कर लें।
बोर्डिंग स्कूल में बच्चों को अलग तरीके का माहौल मिलता है, जिससे उनका विकास बेहतर होता है। यहाँ का माहौल घर से अलग होता है। यहां बच्चे ग्रुप में रहते हैं, जिसकारण वे कम समय में अधिक चीजें सीख पाते हैं। बोर्डिंग स्कूल में रहकर बच्चों का व्यक्तिगत विकास भी होता है। वे सभी के साथ मिल-जुलकर रहना सीखते हैं। घर पर रहकर कई बार बच्चे बाहर के लोगों से घुल-मिल नहीं पाते हैं। घर पर रहकर बच्चे पढ़ाई तो कर लेते हैं, लेकिन आत्मनिर्भर नहीं हो पाते। बोर्डिंग स्कूल मैं स्टडी के साथ साथ खेल और कल्चरल ऐक्टिविटीज पर भी ध्यान दिया जाता है। छात्रों को बोर्डिंग स्कूल में रहकर अपने शिक्षकों के साथ अच्छा सम्बन्ध बनाने का मौका मिलता है। बोर्डिंग स्कूल में विभिन्न संस्कृति के बच्चे होते हैं और वे विभिन्न भाषाओं में बात करते हैं। इस कारण बच्चे अपनी भाषा के अलावा अन्य भाषा भी सीख जाते हैं, जो आज के समय में काफी उपयोगी है। वहीं उनकी अंग्रेजी भी अच्छी हो जाती है। बोर्डिंग स्कूल में बच्चों के खाने में healthy food की मात्रा अधिक होती है। बोर्डिंग स्कूल में बच्चे टीवी और मोबाइल से भी दूर रहते हैं।
बोर्डिंग स्कूल चुनते समय लेने वाली सावधानियाँ :
जहाँ तक हो सके स्कूल वही चुने जो fully Residential हो। आजकल बहुत से स्कूल ऐसे हैं जहाँ स्कूल मैं तो बहुत बच्चे हैं परन्तु बोर्डिंग में बहुत कम बच्चे होते हैं, ऐसे में जो facilities बच्चे को मिलनी चाहिये वह नहीं मिल पाती और कभी- कभी तो ऐसा होता है की जो सोच कर हमने बच्चे को बोर्डिंग स्कूल भेजा था उसका विपरीत ही हो जाता है। फुल बोर्डिंग स्कूल होने से स्कूल का daily routine बोर्डर बच्चों के अनुसार होता है अन्यथा उनका routine day border के अनुसार होता है जो की borders के लिए बहुत अच्छा नहीं होता।
स्कूल वही चुने जहाँ स्कूल कैंपस मैं ही टीचर्स रहते हों। कैंपस मैं टीचर्स के होने से बच्चों का डिसिप्लिन बना रहता है। स्कूल के कैंपस का टूर अवस्य लें। विशेषकर डोम, किचन, बाथरूम देखें की वहां की साफ़ सफाई कैसी है।
स्कूल के शिक्षकों के साथ संपर्क में रहें तथा बच्चे की progress पर भी ध्यान रखें।
बच्चे की हेल्थ पर भी नज़र रखें।
बोर्डिंग स्कूल में बच्चों का उनके पेरेंट्स से बात करने का दिन निर्धारित होता है इसलिए बच्चों को बार बार फ़ोन न करें इससे बच्चों का ध्यान भटकता है।
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