Importance of directions in vastu

                                      
यह ब्रह्माण्ड पंचतत्वों अर्थात अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से मिलकर बना है। इन्हीं पंचतत्वों के आपस में सम्बन्ध को वास्तु कहते हैं। ये पांचों तत्व प्राकृतिक हैं। यदि मनुष्य प्रकृति के अनुकूल जीवन-यापन करे तो वह लम्बा और स्वस्थ जीवन जी सकता है। अतएव हम कह सकते हैं कि प्रकृति के अनुरूप रहन-सहन का दूसरा नाम वास्तु-शास्त्र है। वास्तु के सारे नियम प्रकृति के सिद्धांतों पर ही आधारित होते हैं। जैसे कि प्रातः काल की सूर्य की किरणें हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती हैं इसलिए वास्तु-शास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में अधिक खुली जगह होनी चाहिए तथा पश्चिम की अपेक्षा अधिक खिड़की और रोशनदान होने चाहिए। 
वस्तु शब्द से वास्तु का निर्माण हुआ है। वास्तु-शास्त्र घर, भवन, मंदिर आदि निर्माण का प्राचीन भारतीय विज्ञान है। हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली वस्तुओं को किस प्रकार रखा जाए यह भी वास्तु है। यदि किसी भवन में रहने वाले लोग वास्तु के नियमों का पालन करें तो वे धार्मिक, लम्बा, स्वस्थ, शांतिपूर्ण, धन धान्य से सम्पन जीवन यापन कर सकते हैं। 

वास्तु-शास्त्र में दिशाएँ:

वास्तु-शास्त्र को अच्छी तरह समझने के लिए दिशाओं का ज्ञान होना बहुत ही आवशयक है, जिस पर पूरा वास्तु-शास्त्र आधारित होता है। वास्तु-शास्त्र में कमरों, रसोईघर, शौचालय, आँगन आदि का निर्माण इन्हीं दिशाओं के अनुसार किया जाता है। वास्तु-शास्त्र में 8 दिशाएँ होती हैं। 

1. पूर्व (East)
2. पश्चिम (West)
3. उत्तर (North)
4. दक्षिण (South)
5. ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) (North-East)
6. वायव्य (उत्तर-पाश्चिम) (North-West)
7. आग्नये (दक्षिण-पूर्व) (South-East)
8. नैर्ऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) (South-West)

दिशाओं से सम्बद्ध देवता और ग्रह:

1. पूर्व - इस दिशा के देवता हैं इंद्र और ग्रह स्वामी हैं सूर्य
2. पश्चिम - इस दिशा के देवता हैं वरुण और ग्रह स्वामी हैं शनि।   
3. उत्तर - इस दिशा के देवता हैं कुबेर और ग्रह स्वामी हैं बुध।  
4. दक्षिण - इस दिशा के देवता हैं यम (मृत्यु के देवता) और ग्रह स्वामी हैं मंगल। 
5. ईशान कोण - इस दिशा के देवता हैं शिव और ग्रह स्वामी हैं गुरु। 
6. वायव्य कोण - इस दिशा के देवता हैं वायु और ग्रह स्वामी हैं चन्द्रमा। 
7. आग्नये कोण - इस दिशा के देवता हैं अग्नि और ग्रह स्वामी हैं शुक्र। 
8. नैर्ऋत्य कोण - इस दिशा के देवता हैं राक्षस और ग्रह स्वामी हैं राहु-केतु।

दिशाओं का महत्व:  

पूर्व - यह पितृस्थान है। यह दिशा घर के पुरषों पर प्रभाव डालती है। इस दिशा में कुछ स्थान खुला छोड़ देना चाहिए इससे परिवार के मुखिया को लम्बा जीवन प्राप्त होता है
पश्चिम - यह दिशा प्रसिद्धि, सफलता, सम्पनता और उज्जवल भविष्य प्रदान करती है
उत्तर - यह स्थान माता का होता है। इस दिशा में कुछ स्थान खुला छोड़ने से माता को लाभ होता है। चिंतन-मनन के लिए उत्तर की और मुहँ रखा जाना चाहिए। इस दिशा में दरवाज़े एवं खिड़कियां होने से कुबेर की सीधी दृष्टि पड़ती है जिससे धन–दौलत, सुख–शांति मिलती है          
दक्षिण - यह दिशा धन, सफलता, मान-सम्मान, सम्पन्नता, रोज़गार, शांति और  ख़ुशी प्रदान करती है
ईशान कोण - इस स्थान को ईश्वर तुल्य माना गया है। यह स्थान पुरुष संतान का फल देता है तथा परिवार को स्थायित्व प्रदान करता है। इस स्थान में किसी भी प्रकार का दोष नहीं होना चाहिए   
वायव्य कोण - यह दिशा मित्रता और शत्रुता का कारण होती है। यदि यह दिशा दोषपूर्ण है तो अनेक शत्रु होंगे और यदि यह दिशा दोषमुक्त तो अनेक मित्र तथा सहायक होंगे
आग्नये कोण - यह स्थान स्वास्थ्य का कारण माना जाता है
नैर्ऋत्य कोण - यह स्थान अच्छे चरित्र का कारण माना जाता है     

Post a Comment

0 Comments