PLACES TO VISIT UTTRAKHAND

 


उत्तराखंड हिमालय के किनारे पर स्थित भारत का एक खूबसूरत राज्य है। इसकी सीमा चीन और नेपाल से लगती है। उत्तराखंड के उत्तर-पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून है। 


उत्तराखंड में बहुत बड़ी संख्या में धार्मिक स्थल हैं, इसलिए उत्तराखण्ड को देवभूमी भी कहा जाता है। उत्तराखण्ड के लगभग हर कोने में किसी ना किसी देवी या देवता का मन्दिर है। भारत कि पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का उद्गम स्थल भी उत्तराखंड में ही है। साधु-महात्मा ध्यान लगाने के लिए उत्तराखंड को सबसे उपयुक्त स्थान मानते हैं। हिमालय के ऊँचे शिखरों, नदियों, झरनों, सर्पाकार सड़कों, घने चीड़ और देवदार के जंगलों से भरे उत्तराखंड के हिल स्टेशन मन को मोह लेते हैं। उत्तराखंड के बहुत से हिल स्टेशन तो जैसे मसूरी, लैंसडाउन, नैनीताल इत्यादि तो अंग्रेजों के शाशनकाल से ही प्रसिद्ध हैं। 

उत्तराखंड देश और विदेश में हिल स्टेशनों और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। आप यहाँ एडवेंचर स्पोर्ट्स जैसे ट्रैकिंग, क्लाइंबिंग और वाटर राफ्टिंग कर सकते हैं। औली में स्कीइंग, ऋषिकेश में राफ्टिंग और गंगोत्री ग्लेशियर में ट्रैकिंग का मज़ा लिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यहाँ कुछ प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान भी हैं जैसे फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (वैली ऑफ़ फ्लावर्स नेशनल पार्क), जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क), राजाजी राष्ट्रीय अभयारण्य (राजाजी नेशनल पार्क) इत्यादि। 

पर्यटक गर्मी के मौसम में और छुट्टियां बिताने के लिए यहां बहुत भारी संख्या में आते हैं। उत्तराखंड में घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से जून के बीच और सितंबर से अक्टूबर का होता है। यदि आप बर्फबारी का आनंद उठाना चाहते हैं तो दिसंबर से फरवरी के बीच उत्तराखंड जा सकते हैं। जुलाई-अगस्त में यहाँ बहुत अधिक बारिश होती है जिस कारण कई जगह भूस्खलन से रास्ते बंद हो जाते हैं। 
 
उत्तराखंड के पर्यटन स्थल

हिल स्टेशन: 
उत्तराखंड में मसूरी, धनोल्टी, नैनीताल, चोपटा, पिथौरागढ़, लैंसडाउन, औली, जैसे खूबसूरत हिल स्टेशन हैंउत्तराखंड के हिल स्टेशन हरी-भरी पहाड़ियों, नदियों, झरनों, विविध वनस्पतियों और जीवों के लिए प्रसिद्ध हैं तथा हिमालय की बर्फ से ढकी लंबी पर्वतमाला के विहंगम दृश्य मन को मोह लेते हैं 

मसूरी 

मसूरी को “क्वीन ऑफ द हिल्स” के नाम से भी जाना जाता है। मसूरी की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग ६६०० फीट है। मसूरी देश के सबसे आकर्षक हिल स्टेशनों में से एक है। यहाँ पूरे वर्ष एक शांत और सुखद वातावरण का अनुभव होता है। यहाँ आप खूबसूरत पहाड़ियों के साथ प्रकृति का आनंद ले सकते हैं और शर्दियों में तो बर्फ़बारी का आनंद भी उठा सकते हैं। शर्दियों में तो यहाँ रात का तापमान शून्य डिग्री तक गिर जाता है। मसूरी में एक ओर जहाँ विशाल हिमालय की चमचमाती बर्फली चोटियों का सुंदर नज़ारा दिखता है तो वहीं दूसरी ओर दून घाटी की अदभुत सुंदरता पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।

मसूरी के मुख्य आकर्षण हैं 

गन हिल: यहाँ आप रोप वे से जाने का आनंद ले सकते हैं। रोप वे की लम्बाई ४०० मीटर है। यहाँ पैदल भी जाया जा सकता है। यहाँ से आप मसूरी और दून घाटी के विहंगम दृश्य का आनंद उठा सकते हैं। आजादी से पूर्व इस पहाड़ी के ऊपर रखी तोप को प्रतिदिन दोपहर को चलाया जाता था ताकि लोग अपनी घड़ियां सैट कर लें, इसी कारण इस स्थान का नाम गन हिल पड़ा।
कैमल बैक रोड: यह ३ कि॰मी॰ लंबा रोड रिंक हॉल के समीप कुलरी बाजार से आरंभ होता है और लाइब्रेरी बाजार पर जाकर समाप्त होता है। इस सड़क पर पैदल चलना बहुत अच्छा लगता है। यहाँ बहुत शान्ति का अनुभव होता है। सूर्यास्त का दृश्य तो यहां से बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ता है। यहाँ पर कुछ नेचुरल रॉक्स हैं जो बैठे ऊंट की तरह लगती हैं।
मसूरी झील यह एक कृत्रिम (आर्टिफीसियल) लेक है यहाँ पैडल-बोट का आनंद उठाया जा सकता है। यह देहरादून मसूरी के राश्ते में मसूरी से लगभग ६ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है। 
कंपनी गार्डन: यह एक बहुत खूबसूरत उद्यान है। यहाँ विभिन्न प्रकार के फूल पौधे हैं। यह लाइब्रेरी से लगभग ३ किलीमीटर की दूरी पर स्थित है।
लाल टिब्बा: यह मसूरी का सबसे ऊँचा पॉइंट है। आप यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का आनंद उठा सकते हैं।    
कैम्पटी फाल: पर्यटकों के लिए यह मुख्य आकर्षण का केंद्र है। यह एक बहुत ही खूबसूरत झरना है। मुसूरी लाइब्रेरी से कैम्पटी फाल की दूरी लगभग १५ किलोमीटर है। इस झरने में आप स्नान कर सकते हैं। यह एक  बहुत सुन्दर झरना है, जो ऊँची पहाड़ियों से घिरी खूबसूरत घाटी में स्थित है। अंगरेज अपनी चाय दावत अकसर यहीं पर किया करते थे, इसीलिए इस झरने का नाम कैंपटी (कैंप+टी) फाल पड़ा।

कैसे पहुंचे (How to Reach) –
सड़क मार्ग - मसूरी सड़क मार्ग द्वारा उत्तरखंड के प्रमुख शहरों से जुड़ा है बस द्वारा मसूरी पहुँचने के लिए आपको सबसे पहले देहरादून पहुंचना होगा, देहरादून से शेयर्ड टैक्सी या सरकारी बस से मसूरी पहुंचा जा सकता है। देहरादून से मसूरी लगभग ३५ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है। 
रेल मार्ग - निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून है।
दिल्ली से मसूरी कि दूरी लगभग २७५ किलोमीटर है। 

धनौल्टी 
धनोल्टी तेजी से उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन स्थलों के रूप में उभर रहा है। धनोल्टी भीड़-भाड़, व्यस्त बाजार और प्रदूषण से दूर देवदार के जंगलों से घिरा शांत और खूबसूरत हिल स्टेशन है। यदि आप शहर कि भाग-दौड़ भरी जिंदगी से दूर जाना चाहते हैं तो धनौल्टी आपके लिए बहुत ही आदर्श जगह है। देवदार और ओक्स के वृक्ष, ठंडी व शांत हवाएँ, मनमोहक मौसम, हरी घास के मैदान, बर्फ से ढके पहाड़ यहाँ की कुछ ख़ास विशेषताएँ हैं। धनौल्टी बहुत ही शांत जगह है। यदि आप स्नो फॉल का मजा लेना चाहते हैं तो सर्दियों में यहाँ जरूर जाएं। धनोल्टी जाने के लिए सबसे अच्छा समय मार्च से जून के बीच है।

धनौल्टी के मुख्य आकर्षण हैं 

धनोल्टी में उतने दर्शनीय स्थल नहीं हैं जितने मसूरी में हैं लेकिन फिर आप यहाँ ईको-पार्क, सुरकंडा देवी मन्दिर घूम सकते हैं

कैसे पहुंचे (How to Reach)
सड़क मार्ग - धनोल्टी सड़क मार्ग द्वारा उत्तरखंड के प्रमुख शहरों से जुड़ा है। मसूरी से लगभग तीस किलोमीटर दूर टिहरी जाने वाली रोड पर है धनौल्टी स्थित है। बस द्वारा धनौल्टी जाने के लिए सबसे पहले देहरादून जाना पड़ेगा जहाँ से टैक्सी या सरकारी बस द्वारा धनौल्टी पहुंचा जा सकता  है। यदि आप मसूरी से धनौल्टी जाना चाहते हैं तो यहाँ से भी आप टैक्सी या सरकारी बस द्वारा धनौल्टी जा सकते हैं।
रेल मार्ग - नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है जो कि धनौल्टी से ६० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 
दिल्ली से धनौल्टी कि दूरी लगभग २९० किलोमीटर है।

नैनीताल 
नैनीताल उत्तर भारत के सबसे खूबसूरत हिल स्टेशनों में से एक है। पहाड़ों के बीच बसा यह स्‍थान झीलों से घिरा हुआ है। इसलिए इसे 'झीलों का शहर' भी कहा जाता है। तीन तरफ पहाड़ों से घिरा नैनीताल खूबसूरत झील नैनी ताल के आसपास स्थित है। नैनी झील यहाँ कि सबसे प्रमुख झील है इसी के नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा। नैनी झील के दोनों और सड़कें हैं। ताल के मल्ला भाग को मल्‍लीताल और नीचले भाग को तल्‍लीताल कहते हैं। यहाँ हमेशा खेल - तमाशे होते रहते हैं। यहाँ झील के आस-पास बने शानदार बंगलों और होटलों में रुकने का अपना ही आनन्द है। सर्दियों में बर्फ़ के गिरने के दृश्य को देखने हज़ारों पर्यटक यहाँ पहुँचते हैं। 
नैनीताल में सर्दियों के महीनों के अलावा पूरे साल सुखद मौसम बना रहता है। सर्दियों में नैनीताल बहुत ठंडा हो जाता है।
नैनीताल के मुख्य आकर्षण हैं    
नैनी झील- यह यहाँ के प्रमुख प्रर्यटन स्थलों में से एक है। यहाँ आप बोटिंग का आनंद ले सकते हैं। रात के समय जब चारों ओर बल्‍बों की रोशनी होती है तब तो इसकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है। झील के दोनों किनारों पर बहुत सी दुकानें हैं 
स्नो व्यू पॉइंट- यहाँ आप 'रोप वे' से पहुँच सकते हैं। रोपवे मल्लीताल से शुरू होती है। रोपवे से नैनीताल शहर का खूबसूरत दृश्‍य दिखाई पड़ता है। यहाँ से आप देश की दूसरी सबसे ऊँची हिमालयी चोटी नंदा देवी के मनोरम दृश्य का आनंद उठा सकते हैं। यहीं एक छोटा सा देव मुंडी का मंदिर है।
नैनो देवी मंदिर- नैनी झील के किनारे पर नैना मंदिर है। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। 
नैना पीक - इसको चीना चोटी के नाम से भी जाना जाता है। यह नैनीताल का सबसे ऊंचा पॉइंट है। यहाँ से नैनीताल बहुत सुन्दर लगता है। आप चोटी तक पैदल या टट्टू पर जा सकते हैं।
चिड़ियाघर - नैनीताल में एक छोटा लेकिन बहुत ही सुंदर चिड़ियाघर है। इसमें हिरण, भालू, बाघ कई प्रकार के जानवर हैं। यह चिड़ियाघर देश के सबसे स्वच्छ चिड़ियाघरों में से एक है। चिड़ियाघर तक पैदल या छोटे वाहनों से पहुंचा जा सकता है।


कैसे पहुंचे (How to Reach)
सड़क मार्ग - नैनीताल उत्तराखंड के कई प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है जहाँ से बस, टैक्सी द्वारा नैनीताल पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग - नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जिसकी नैनीताल से दूरी लगभग ३५ किलोमीटर है। 
दिल्ली से नैनीताल कि दूरी लगभग ३१० किलोमीटर है 

पिथौरागढ़ 
यह चीन और नेपाल की सीमा से लगा हुआ उत्तराखंड के प्रमुख स्थलों में से एक है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है। यहाँ से हिमालय कि ऊँची चोटियां मन को मोह लेती हैं। यहां से १४ मील पूर्व की ओर काली नदी पर झूला पुल है जिसको पार कर नेपाल पहुंचा जा सकता है। यहाँ से तीर्थयात्री कैलाश और मानसरोवर की यात्रा पर जाते हैं।

पिथौरागढ़ के मुख्य आकर्षण हैं   
पाताल भुवनेश्वर, पिथौरागढ़ फोर्ट, घाट, कामाक्षा टेम्पल, ध्वज टेम्पल, मिलम ग्लेशियर, थल केदार, धारचूला, मुनस्यारी, बेरीनाग हैं।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
सड़क मार्ग - पिथौरागढ़ उत्तराखंड के कई प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है जहाँ से बस, टैक्सी द्वारा पिथौरागढ़ पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग - नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर है जो पिथौरागढ़ से लगभग १५० किलोमीटर है। 
दिल्ली से पिथौरागढ़ कि दूरी लगभग ५०० किलोमीटर है 

औली
यहाँ का प्राकृतिक सोन्द्रिया देखते ही बनता है यहाँ से हिमालय कि बर्फ से ढकी चोटियों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। यहाँ की स्नो-फॉल देखने का अपना अलग ही आनंद है और पर्यटक खासकर बच्चे इस बर्फ में खूब खेलते हैं। यहाँ पर देवदार के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं। इनकी महक यहाँ की ठंडी और ताजी हवाओं में महसूस की जा सकती है। यहाँ पर पर्यटक स्कीइंग का मज़ा भी लेते हैं। यहाँ आप केबल कार का आनंद भी उठा सकते हैं। केबल कार लगभग ४ किलोमीटर लम्बी है जो कि एशिया की सबसे ऊँची केबल कार है। केबल कार की सवारी जोशीमठ से शुरू होकर औली पर खत्म होती है।

औली जाने के लिए सबसे अच्छा मौसम जनवरी-मार्च का है। इस समय यहाँ पर बर्फ पड़ती है, जिसमें स्की करने का अलग ही आनंद है। दिसंबर से मार्च यहाँ बहुत ठण्ड होती है। इन महीनों में तो यहाँ का तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है। इसलिए यदि आप इस समय औली जाते हैं तो गर्म कपड़े ले जाना न भूलें। 

औली के मुख्य आकर्षण हैं
गुरसों बुग्याल अगर आप ट्रैकिंग के शौकीन हैं तो यहाँ जरूर जायें। औली से ३ किलोमीटर ट्रैक करके यहाँ पहुंचा जा सकता है। यहाँ से हिमालय कि ऊँची चोटियों नंदा देवी, त्रिशूल, द्रोण पर्वत आदि को देखा जा सकता है।
छत्रा कुंड घने जंगलों के बीच एक छोटी सी झील है जिसका पानी बहुत साफ़ है। यहाँ से प्रकृति के नज़ारे देखने योग्य हैं। यह गुरसो बुग्याल से सिर्फ १ किमी की दूरी पर है। 
क्वानी बुग्याल ट्रैकिंग के लिए आदर्श जगह है। यह गुरसो बुग्याल से १२ किलोमीटर दूर स्थित है। क्वानी बुग्याल जाने का सबसे अच्छा समय जून और सितंबर है।
चिनाब झील इस जगह जाने के लिए बहुत ऊँची चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। यहां का मनोरम दृश्य मन को भा जाता है। यहाँ किसी व्हीकल से जाना मुश्किल है इसलिए यह पर्यटकों के बीच कम प्रचलित है।
जोशीमठ सर्दियों के दौरान श्री बद्रीनाथ जी का घर है। जोशीमठ औली से केबल कार द्वारा जुड़ा हुआ है। जोशीमठ की यात्रा के दौरान आप कल्पवृक्ष और नरसिंह मंदिर की यात्रा कर सकते हैं। जोशीमठ से औली १४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
सड़क मार्ग - सड़क मार्ग द्वारा औली पहुँचने के लिए आपको सबसे पहले ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून, पहुंचना होगा यहाँ से सरकारी बस या टैक्सी द्वारा औली पहुंचा जा सकता है। औली जोशीमठ से केवल १४ किलोमीटर है। 
रेल मार्ग - नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो कि औली से लगभग २७५ किलोमीटर दूर है।     
दिल्ली से औली कि दूरी लगभग ५०० किलोमीटर है 

चोपटा
चोपटा को इसकी नैचुरली ब्यूटी कि वजह से इंडिया का मिनी स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता है। सर्दियों में चोपटा पूरी तरह से बर्फ से ढक जाता है। चोपटा एक छोटा सा गांव है। यहाँ से चंद्रशिला और तुंगनाथ के लिए ट्रैकिंग शुरू होती है। चोपटा से तुंगनाथ के लिए शार्ट ट्रैक है। यहाँ भगवान शिव का मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर १००० साल पुराना है। तुंगनाथ से १ घंटे कि दूरी पर चंद्रशिला पीक है। चंद्रशिला पीक पर पहुँच कर हिमालय के नंदा देवी, त्रिशूल पर्वत का खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है। इस ट्रैक पर बहुत ही खूबसूरत पाइन और देवदार के जंगल हैं। इस ट्रैक कि गिनती इजी ट्रैक में होने के कारण यह ट्रैकिंग के लिए बहुत प्रसिद्ध है।

चोपटा जाने के लिए सबसे अच्छा मौसम अप्रैल-नवंबर का है।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
चोपटा उत्तराखंड के कई प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है जहाँ से बस, टैक्सी द्वारा चोपटा पहुंचा जा सकता है। चोपटा कि दिल्ली से दूरी लगभग ४०० किलोमीटर है नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जिसकी चोपटा से दूरी लगभग १६० किलोमीटर है। 

लैंसडाउन
उत्तराखंड राज्य के पौढ़ी गढ़वाल में स्थित लैंसडाउन एक बहुत ही खूबसूरत शहर है। यह एक छावनी है, अंग्रेजों ने पहाड़ों को काटकर इस जगह को वर्ष १८८७ में बसाया था। लैंसडाउन बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन है। यहाँ की प्राकृतिक छटा सम्मोहित करने वाली है तथा हर तरफ फैली हरियाली आपको एक अलग ही दुनिया का एहसास कराती है। यहाँ का मौसम पूरे साल सुहावना बना रहता है। यहाँ से हिमालय कि बर्फीली चोटियाँ, दूर-दूर तक फैले पर्वत, छोटे-छोटे गांव का दृश्य बहुत ही मनोरम लगता है।
यहाँ १०० साल पुराना एक सेंट मेरी चर्च है। यहाँ पर एक छोटी सी झील भी है जहाँ आप बोटिंग का आनंद उठा सकते हैं। यहाँ से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ताड़केश्वर मंदिर है। यह भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। इसे सिद्ध पीठ भी माना जाता है। पूरा मंदिर ताड़ और देवदार के वृक्षों से घिरा हुआ है। यह पूरा इलाका खूबसूरत होने के साथ-साथ शान्त भी है। इसके अलावा आप यहाँ गढ़वाल राइफल्स वॉर मेमोरियल और रेजिमेंट म्यूजियम भी देख सकते हैं।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
लैंसडाउन कि दिल्ली से दूरी लगभग २७० किलोमीटर है दिल्ली से ५-६ घंटो में लैंसडाउन पहुंचा जा सकता है।नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्धार है जिसकी लैंसडाउन से दूरी लगभग ४० किलोमीटर है। बस द्वारा लैंसडाउन जाने के लिए पहले कोटद्धार जाना पड़ेगा। कोटद्धार से शेयर्ड टैक्सी या सरकारी बस से लैंसडाउन जा सकते हैं।  
 
देहरादून 
गंगा और यमुना नदी के बीच में बसा देहरादून उत्तराखंड की राजधानी है । यह अपने प्राकृतिक सौन्दर्य तथा स्थापत्य कला के लिया मशहूर है। यंहा के प्रमुख आकर्षण सहस्त्रधारा वॉटरफॉल, टाइगर फॉल, मेड्रोलिंग मोनेस्ट्री, तपेश्वर मंदिर, तपोवन, फारेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट और मालसी डियर पार्क हैं।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
देहरादून सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। देहरादून कि दिल्ली से दूरी लगभग २५० किलोमीटर है।

उत्तराखंड के धार्मिक स्थल: 
अनेक पवित्र धार्मिक स्थलों के कारण उत्तराखंड को हिंदुओं के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानों में गिना जाता है। हिंदुओं की आस्था के प्रतीक छोटा चारधाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री भी यहीं स्थित हैं। उत्तराखंड गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का उद्गम स्थल भी है। केदारनाथ मंदिर, बद्रीनाथ मंदिर, गंगोत्री मंदिर, यमुनोत्री मंदिर, हरिद्धार, ऋषिकेश यहाँ के कुछ प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। बद्रीनाथ को तो चार धामों में से एक माना जाता है।

हरिद्धार 
यह उत्तराखंड का प्रसिद्ध धार्मिक शहर है। हरिद्धार का मतलब होता है हरी का द्धार, भगवान को पाने का दरवाज़ा, मोक्ष पाने का मार्ग। गंगा नंदी करीब २०० कि॰मी॰ का सँकरा पहाड़ी रास्ता तय करके ऋषिकेश होते हुए पहली बार मैदानों का स्पर्श हरिद्धार में ही करती है, यहां से निकलकर गंगा नदी मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करती है। एक मान्यता है कि जब धन्वंतरी समुद्र मंथन के लिए घड़े को ले जा रहे थे तो भूल से इस जगह पर अमृत की कुछ बुँदे गिर गईं। उस स्थान को जहाँ अमृत कि बूंदें गिरीं थीं ब्रह्म कुंड कहते हैं यह ब्रह्म कुंड हर की पौड़ी पर स्थित है। हर की पौड़ी हरिद्धार का सबसे पवित्र घाट है। जहाँ तीर्थयात्री त्योहारों तथा पवित्र दिवसों पर स्नान करते हैं।
    
हरिद्धार के मुख्य आकर्षण हैं 
हर की पौड़ी, मनसा देवी टेम्पल, चंडी देवी टेम्पल और वैष्णो देवी टेम्पल यहाँ के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। आप रोपवे से मनसा देवी टेम्पल और चंडी देवी टेम्पल जा सकते हैं। यदि चाहें तो ट्रैकिंग करते हुए भी यहाँ पहुंचा जा सकता है।
कैसे पहुंचे (How to Reach)
हरिद्धार सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। हरिद्धार कि दिल्ली से दूरी लगभग २०० किलोमीटर है  

ऋषिकेश 
ऋषिकेश बहुत ही शांत और कई आश्रमों का घर है। प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस स्थान से बहती गंगा नदी को देखकर अत्यंत आनंद का अनुभव होता है। ऋषिकेश को छोटा चार धाम यात्रा केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्धार भी माना जाता है। यहाँ के आश्रमों में बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति के लिए आते हैं।

ऋषिकेश के मुख्य आकर्षण हैं 
नीलकंठ महादेव मंदिर: भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया था। विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था जिसकारण उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहां भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।
ऋषिकेश से तीस किलोमीटर की दूरी पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। यहाँ ऋषिकेश से शेयर्ड जीप द्वारा पहुंचा जा सकता है। यदि आप चाहें तो ऋषिकेश से जंगल के रस्ते ट्रैकिंग करते हुए भी यहाँ जा सकते हैं। यह ट्रैक १२-१४ किलीमीटर का है। 
वशिष्ठ गुफा: ऋषिकेश से २२ किलोमीटर की दूरी पर ३००० साल पुरानी वशिष्ठ गुफा है। कहा जाता है कि यह पुरोहित वशिष्ठ का निवास स्थल था। वशिष्ठ गुफा में साधुओं को ध्यानमग्न मुद्रा में देखा जा सकता है।
     
ऋषिकेश के कुछ अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं लक्ष्मण झूला, राम झूला, त्रिवेणी घाट,स्वर्ग आश्रम, भरत मंदिर, कैलाश निकेतन मंदिर, गीता भवन आदि। 

कैसे पहुंचे (How to Reach)
ऋषिकेश सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। ऋषिकेश कि दिल्ली से दूरी लगभग २३० किलोमीटर है  
रुद्रप्रयाग 
रुद्रप्रयाग अलकनंदा तथा मंदाकिनी नदियों का संगमस्थल है। रुद्रप्रयाग में अलकनंदा मंदाकिनी से मिलती है फिर अलकनंदा देवप्रयाग में जाकर भागीरथी से मिलती है और पवित्र गंगा नदी का निर्माण करती है। मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों के संगम का दृश्य तो बहुत ही मनमोहक होता है। रुद्रप्रयाग का नाम भगवान शिव के नाम पर रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ नारद मुनि ने शिव की उपासना की थी और शिव जी ने  नारद मुनि को आशीर्वाद देने के लिए रौद्र रूप धारण किया था।
यह पूरा क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व के स्थानों, झीलों और ग्लेशियरों से भरा हुआ है।
केदारनाथ रुद्रप्रयाग से ८६ किलोमीटर दूर है। 


रुद्रप्रयाग के मुख्य आकर्षण हैं 

अगस्त्यमुनि यहाँ ऋषि अगस्‍त्‍य ने कई वर्षों तक तपस्‍या की थी। बैसाखी के अवसर पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। यह रुद्रप्रयाग से २० किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।
गुप्‍तकाशी में एक कुंड है जिसका नाम है मणिकर्णिका कुंड है।  इसमें दो जलधाराएँ बराबर गिरती रहती हैं जिनको गंगा और यमुना नाम से जाना जाता है। लोग इसमें स्नान करते हैं। यह रुद्रप्रयाग से ४५ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।
खिरसू- यहाँ के बर्फ से ढके पहाड़ों कि खूबसूरती देखते ही बनती है। यहां बहुत अधिक संख्‍या में ओक, देवदार के वृक्ष हैं। यह रुद्रप्रयाग से ४८ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है। 
दिओरिया ताल एक झील है जो चारों तरफ से वनों से घिरी हुई है। यह रुद्रप्रयाग से ५५ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।
सोनप्रयाग-  ऐसी मान्यता है कि यहाँ के पवित्र पानी को छू लेने से बैकुठ धाम पंहुचाने में मदद मिलती है। यह वही स्‍थान है जहां भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। यह रुद्रप्रयाग से ७२ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।
गौरीकुंड यह वही स्‍थान है जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्‍या की थी। यह रुद्रप्रयाग से ७७ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
कई प्रमुख शहरों जैसे देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, दिल्‍ली से रुद्रप्रयाग के लिए बसें चलती हैं। रुद्रप्रयाग कि दिल्ली से दूरी लगभग ३८० किलोमीटर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जिसकी रुद्रप्रयाग से दूरी लगभग १५२ किलोमीटर है।

गंगोत्री 
गंगोत्री गंगा का उद्गम स्थल है। गंगा का उद्गम स्रोत यहाँ से लगभग २० किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में स्थित है। इस गौमुख ग्लेशियर में भगीरथी एक छोटी गुफानुमा ढांचे से आती है। गंगोत्री से यहां तक की दूरी पैदल या फिर ट्ट्टुओं पर सवार होकर पूरी की जाती है। गंगा का मन्दिर तथा सूर्य, विष्णु और ब्रह्मकुण्ड आदि यहाँ के प्रमुख पवित्र स्थल हैं। तीर्थ यात्रा करने का समय अप्रैल से नवंबर के बीच होता है। इसकी गिनती छोटा चार धाम यात्रा में होती है। गंगोत्री में सूर्य, विष्णु, ब्रह्मा आदि देवताओं के नाम पर अनेक कुंड हैं। भगीरथ शिला से कुछ दूर पर रुद्रशिला है जहां शिव ने गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया था।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
सड़क मार्ग- गंगोत्री ऋषिकेश से बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश से गंगोत्री २६० किलोमीटर है।  
रेल मार्ग - निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून है जो गंगोत्री से २६० किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।   

बद्रीनाथ 
यहाँ बद्रीनाथ मन्दिर है जो चार प्रसिद्ध धामों में से एक है। यह मंदिर विष्णु जी को समर्पित है यहाँ विष्णु जी के एक रूप "बद्रीनारायण" की पूजा होती है। यह मंदिर बहुत प्राचीन है। अत्यधिक शर्दी होने के कारण यह मंदिर वर्ष के केवल छह महीनों (अप्रैल के अंत से लेकर नवम्बर की शुरुआत तक) के लिए ही खुलता है। विष्णु पुराण, महाभारत तथा स्कन्द पुराण जैसे कई प्राचीन ग्रन्थों में भी इस मन्दिर का उल्लेख मिलता है। बद्रीनाथ पवित्र चार धामों के अतिरिक्त छोटे चार धामों में भी गिना जाता है।
हालाँकि यह मन्दिर उत्तर भारत में स्थित है परन्तु यहाँ के मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य के नम्बूदरी सम्प्रदाय के ब्राह्मण होते हैं।
सतोपंथ, नीलकंठ चोटी, तप्त कुंड, गणेश गुफा, व्यास गुफा, भीम पुल, माढ़ा गांव, जोशीमठ, चरणपादुका, माता मूर्ति मंदिर, घंटाकर्ण मंदिर, वासुकी ताल, वसुंधरा फॉल्स, लीला ढोंगी, उर्वशी मंदिर, पंच शिला और सरस्वती नदी यहाँ के कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। 

बद्रीनाथ जाने के लिये परमिट की आवश्यकता होती है, जो कि जोशीमठ के एसडीएम द्वारा जारी किया जाता है। इस परमिट कि सहायता से ही जोशीमठ से बद्रीनाथ के बीच ट्रैफिक कंट्रोल किया जाता है। रास्ते में ट्रैफिक बहुत होने के कारण से बेरियर लगाए जाते हैं और इस परमिट के आधार पर ही पुलिस यात्रा कि अनुमति देती है। 

कैसे पहुंचे (How to Reach)
सड़क मार्ग- ऋषिकेश से टैक्सी या सरकारी बस द्वारा बद्रीनाथ पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ ३०० किलोमीटर की दूरी पर है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक पूरा रास्ता पहाड़ों से घिरा है।
रेल मार्ग - निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्धार है जो यहाँ से लगभग ३१७ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।   

यमुनोत्री
यमुनोत्री यमुना नदी का उद्गम स्थल है। यमुना नदी यहाँ पर स्थित चम्पासर ग्लेशियर से निकलती है। यहाँ यमुना माता का मंदिर है। यह छोटे चार धाम का पहला स्थान है। ऐसा माना जाता है कि यमुना यम कि बहन थी इसलिए यमुना में स्नान करने से मृत्यु के दर्द छुटकारा मिल जाता है।
यह पूरा पवित्र क्षेत्र अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्यता से घिरा हुआ है। जानकी चट्टी से पिठ्टू, खच्चर, पालकी या पैदल यमुनोत्री तक जा सकते हैं। जानकी चट्टी से यमुनोत्री कि दूरी ६ किलोमीटर कि है।

सूर्य कुंड, हनुमान चट्टी, जानकी चट्टी, खरसाली यमुनोत्री के कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

यमुनोत्री तक पहुंचना थोड़ा मुश्किल माना जाता है। हरिद्धार से यमुनोत्री तक पहुंचने में करीब एक दिन लग जाता है तथा यह मार्ग घने जंगलों से होकर गुजरता है।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
सड़क मार्ग- ऋषिकेश से टैक्सी या सरकारी बस द्वारा पहले जानकी चट्टी पहुंचना पड़ेगा। ऋषिकेश से जानकी चट्टी की दूरी २२० किलोमीटर है। फिर जानकी चट्टी से यमुनोत्री ६ किलोमीटर पिठ्टू, खच्चर, पालकी से या पैदल जा सकते हैं
रेल मार्ग - निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून और ऋषिकेश है। देहरादून यहाँ से लगभग १८० किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है और ऋषिकेश यहाँ से लगभग २०० किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।  

केदारनाथ
केदारनाथ में प्राचीन शिव मंदिर है। यहाँ भगवान शिव का ज्योर्तिलिंग स्थापित है जिसको सभी 12 ज्योर्तिलिंगों में सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। केदारनाथ छोटे चार धामों में से एक धाम है। 
केदारनाथ में बर्फ से ढकी चोटियों के साथ-साथ अनगिनत पर्वतमालाएँ हैं। शर्दियों में तो केदारनाथ पूरी तरह बर्फ से ढक जाता है इस कारण यह मंदिर वर्ष के केवल छह महीनों (अप्रैल के अंत से लेकर नवम्बर की शुरुआत तक) के लिए ही खुलता है। ऐसा माना है कि यदि बद्रीनाथ जाकर केदारनाथ के दर्शन नहीं किए तो यात्रा पूरी नहीं हुई। गौरीकुंड से टट्टू पर या पैदल केदारनाथ पहुंचा जा सकता है। गौरीकुंड से केदारनाथ कि दूरी लगभग १६ किलोमीटर है।

यहाँ बहुत ठण्ड होती है इसलिए अपने साथ रजाई या जैकेट, विंड शीटर, रेनकोट, दवाईयां ले जाना न भूलें। सामान के लिए सूटकेस ले जाने से परहेज करें। इसकी जगह छोटे छोटे बैग में सामान पैक करें जिससे पैदल चलने में परेशानी नहीं होगी।
 
कैसे पहुंचे (How to Reach)
सड़क मार्ग- ऋषिकेश से टैक्सी या सरकारी बस द्वारा पहले गौरीकुंड पहुंचना पड़ेगा। ऋषिकेश से गौरीकुंड कि दूरी २२० किलोमीटर है। फिर गौरीकुंड से केदारनाथ १७ किलोमीटर कि ट्रैकिंग करते हुए पहुँचा जा सकता है।
रेल मार्ग - निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो यहाँ से लगभग २२० किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।

हेमकुंड साहिब
हेमकुंड साहिब सिक्खों के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। माना जाता है कि यहां पर सिक्खों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने ध्यान साधना की थी। यह १५ हजार फीट की ऊंचाई पर ग्लेशियरों से घिरा हुआ है। इन्हीं ग्लेशियरों के बर्फीले पानी से जिस कुंड का निर्माण होता है उसे हेमकुंड साहिब कहा जाता है।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
हेमकुंड साहिब जाने के लिए सबसे पहले गोविंद घाट जाना पड़ेगा। गोविंद घाट से लगभग २० किलोमीटर की पैदल यात्रा करके हेमकुंड साहिब पहुंचा जा सकता है। गोविंद घाट उत्तराखंड के प्रमुख स्थानों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग - निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो यहाँ से लगभग २८० किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।

उत्तराखंड के नेशनल पार्क: 

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय पार्क है। १९३६ में इसकी स्थापना यह बंगाल बाघ कि रक्षा के लिए कि गई थी। यह नैनीताल जिले के रामनगर के पास स्थित है। यहाँ कुछ चयनित क्षेत्रों में ही पर्यटन गतिविधि को अनुमति दी जाती है ताकि लोगों को इसके शानदार परिदृश्य और विविध वन्यजीव देखने का मौका मिल सके। पार्क में घूमते हुए पहाड़ी, नदी के बेल्ट, दलदलीय गड्ढे, घास के मैदान, झील आदि को देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।

यहाँ पर शेर, हाथी, भालू, बाघ, सुअर, हिरन, चीतल, साँभर, पांडा, काकड़, नीलगाय, घुरल और चीता आदि 'वन्य प्राणी' बहुत अधिक संख्या में मिलते हैं। इस पार्क में कई रंग - बिरंगे पक्षियों की जातियाँ भी दिखाई देती हैं।

कार्बेट नेशनल पार्क में पर्यटकों के भ्रमण का समय नवम्बर से मई तक होता है। जिम कार्बेट में जीप और हाथी की सफारी की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
सड़क मार्ग से जिम कॉर्बेट आसानी से पहुँचा जा सकता है। दिल्ली से जिम कॉर्बेट की दूरी लगभग २४० किलोमीटर है
रेल मार्ग - रामनगर के रेलवे स्टेशन से १२ कि॰मी॰ की दूरी पर 'कार्बेट नेशनल पार्क' का गेट है। रामनगर रेलवे स्टेशन से छोटी गाड़ियों, टैक्सियों और बसों से पार्क तक पहुँचा जा सकता है।

वैली ऑफ़ फ्लावर्स नेशनल पार्क
इसको फूलों कि घाटी भी कहा जाता है। यह चमोली जिले में स्थित है। फूलों की घाटी को यूनेस्को द्वारा सन् १९८२ में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। यहाँ ५०० से अधिक फूलों कि प्रजातियाँ हैं। यहाँ फूलों के अतिरिक्त कई प्रकार कि जड़ी-बूटियाँ और वनस्पतियाँ  भी पाई जाती हैं जिनका प्रयोग कई प्रकार कि दवाई बनाने में किया जाता है। फूलों की घाटी में जुलाई, अगस्त व सितंबर के महीनों में घूमना सर्वोत्तम माना जाता है । जो जून की शुरुआत से अक्टूबर के अंत तक खुला रहता है।
कैसे पहुंचे (How to Reach)
फूलों की घाटी तक पहुँचने के लिए चमोली जिले के अन्तिम बस अड्डे गोविन्दघाट तक आना पड़ेगा। यहाँ से फूलों कि घाटी प्रवेश स्थल की दूरी १३ किमी है जहाँ से पर्यटक ३ किमी लम्बी व आधा किमी चौड़ी फूलों की घाटी में घूम सकते हैं। गोविन्दघाट से दिल्ली की दूरी ५००  किलोमीटर है। 
रेल मार्ग - निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो यहाँ से लगभग २८० किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है।

राजाजी नेशनल पार्क
राजाजी नेशनल पार्क हाथियों को सरंक्षित करने के लिए बनाया गया नेशनल पार्क है। हाथियों के अलावा यहाँ हिरन, चीते, सांभर और मोर भी पाए जाते हैं। यहाँ पर पक्षियों कि ३०० से भी अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

राजाजी नेशनल पार्क १५ नवंबर से १५ जून तक खुलता है। यहाँ सफारी करने का समय सुबह ६ से ११, ११:३० से १ और २:३० से ५:३० हैं। हालाकि मौसम के अनुसार समय में थोड़ा परिवर्तन होता रहता है। अप्रैल से जून माह थोड़ा गर्म जरूर होता है परन्तु जानवरों को देखने के लिए यह समय बहुत अच्छा होता है क्योंकि इस समय जानवर पानी कि तलाश में घने जंगलों से निकलकर खुले स्थान में आते हैं। 
कैसे पहुंचे (How to Reach)
राजाजी नेशनल पार्क हरिद्धार से १० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेल और सड़क मार्ग द्वारा हरिद्धार आसानी से पहुँचा जा सकता है। हरिद्धार दिल्ली से लगभग २०० किलोमीटर दूर है।

उत्तराखंड के ट्रैकिंग स्थल: 

खतलिंग ग्लेश्यिर 
खतलिंग ग्लेशियर का ट्रेक घत्तु से शुरू होता है, जो टिहरी से ६२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मार्ग की कुल दूरी लगभग ४५ किलोमीटर है। इस ट्रेक पर अन्य महत्वपूर्ण स्थान रीह, गंगी, कल्याणी और भोमकुगुफा हैं।गंगी अंतिम गांव है जिसके बाद किसी भी तरह की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं तथा ट्रेक में अपनी व्यवस्था आपको स्वयं ही करनी होगी। ख़तलिंग ग्लेशियर का शिखर सबसे शानदार और आकर्षक है। यह ट्रेक गढ़वाल के छोटे-छोटे गाँवों, हरी-घास के मैदानों, जंगलों के मध्य से गुजरता है जिससे यह और अधिक रोमांचकारी हो जाता है।ट्रेकर्स को कैम्पिंग हेतु ऋषिकेश, टिहरी या देहरादून से पहले ही तम्बुओं तथा अन्य आवश्यक सामाग्री की व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
खतलिंग ग्लेशियर जाने का सबसे अच्छा समय मई से जून और सितम्बर से अक्टूबर है।
 
कैसे पहुंचे (How to Reach)
यात्रियों को सबसे पहले घत्तु पहुँचाना पड़ेगा जहाँ से खतलिंग ग्लेशियर का ट्रेक शुरू होता है। घत्तु से खतलिंग ग्लेशियर का ट्रेक ४५ किलोमीटर का है। देहरादून, मसूरी, टेहरी, ऋषिकेश से घत्तु बस टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।

पंवाली कांठा 
यहाँ गढ़वाल हिमालय के ऊंचाई वाले घास के मैदान हैं। जिनमें विभिन्न प्रकार के आकर्षक फूल, जड़ी बूटी बहुतायत में पाई जाती हैं। यहाँ से हिमालय पर्वतमाला के मनोरम दृश्यों के साथ-साथ यमुनोत्री-गंगोत्री-केदारनाथ-बदरीनाथ पर्वत शिखरों को भी देखा जा सकता है। यहाँ से सूर्यास्त देखने का अलग ही आनंद है।
यह ट्रेक गंगोत्री से केदारनाथ के प्राचीन धार्मिक मार्ग पर पड़ता है। ट्रेक में जगह-जगह चरवाहे दिखाई देते हैं जो शिवालिक रेंज और हिमालय के बीच निवास करते हैं।
यह ट्रेक घुत्तु नामक स्थान से प्रारम्भ करके सोनप्रयाग / त्रियुगी नारायण तक पूरा किया जाता है।
शरद ऋतु पंवाली काँठा ट्रेक पर जाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त समय है। इस समय हिमालय पर्वत और रंगीन जंगली फूलों से सजे हरे घास के बुग्याल जीवंत नजर आते हैं। भाग्य साथ दे तो आप यहाँ भरल (नीली भेड़) घोर, हिमालयी भालू, दुर्लभ कस्तूरी मृग आदि को देख सकते हैं।


पंवाली कांठा जाने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून और सितम्बर से नवंबर है।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
यात्रियों को सबसे पहले घत्तु पहुँचाना पड़ेगा जहाँ से पंवाली काँठा का ट्रेक शुरू होता है। घत्तु से पंवाली काँठा का ट्रेक २० किलोमीटर का है। देहरादून, मसूरी, टेहरी, ऋषिकेश से घत्तु बस या टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।

नागटिब्बा 
घने जंगलों से घिरी और प्राक्रतिक सौन्दर्य से भरपूर नागटिब्बा की पहाड़ियाँ और यहाँ से हिमालय का मनोरम दृश्य मन को मोह लेता है। नागटिब्बा कि ट्रैकिंग थत्यूड से प्रारम्भ होती है। थत्यूड चंबा मसूरी रोड पर स्थित सुवाखोली नामक स्थल से लगभग १६ कि . मी . की दुरी पर स्थित एक छोटा सा क़स्बा है। थत्यूड से 7 कि.मी. की दुरी पर देवलसारी होते हुए ट्रैक नागटिब्बा तक जाता है। देवलसारी में रहने की व्यवस्था के रूप में वन विभाग का विश्राम गृह है जहाँ रुका जा सकता है। देवलसारी से १४ कि.मी. की दूरी पर नागटिब्बा स्थित है सर्दियों में यहाँ की पहाड़ियां बर्फ से घिरी रहती हैं तथा गर्मियों में यहाँ का मौसम बहुत सुखद रहता है।

कैसे पहुंचे (How to Reach)
यात्रियों को सबसे पहले देवलसारी गांव पहुँचाना पड़ेगा जहाँ से नागटिब्बा का ट्रेक शुरू होता हैदेवलसारी गांव से नागटिब्बा का ट्रेक १४ किलोमीटर का है देहरादून, मसूरी, ऋषिकेश से देवलसारी गांव बस या टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है 

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